आइये अब हम त्वरित रूप से अगरिया क्षेत्र सर्वेक्षण करे। मंडला से प्रारम्भ करे ,मंडला जिले के पूर्व में डिंडोरी तहसील (अब स्वतंत्र जिला बन गया है )में हमें पथरिया अगरिया मिलते है ,उन्हें हम "मानक" अगरिया अगरिया मान सकते है। उनकी संस्कृति एक अलग विशेषता व पहचान लिए हुए है जो आज भी सुरक्षित है। पूर्व की ओर आगे बढ़ते हुए बिलाषपुर में मैकाल पहाड़ियों की तलहटी में और दूरदराज की जमींदारियों में "कल्हा अगरिया " मिलते है। दक्षिण दिशा में रायपुर में गोडधुका लोहार है तथा दुर्ग के अगरिया गोंडी भाषा बोलते है। जाहिर है ये ये सभी अपनी शारीरिक बनावट ,व्यावसायिक तकनीक ,मिथक शाश्त्र तथा धर्म के आधार पर मंडला में रह रहे या पाए जाने वाले अगरियों से ही सम्बंधित है। मंडला के उत्तर में रीवा में पथरिया अगरिया है जिनमे कुछ मिर्जापुर उत्तर प्रदेश जाकर बस गए है। मिर्जापुर के अगरिया। लोहासुर देवी की पूजा करते है और लोहा गलाने की उनकी तकनीक ,मंडला के अगरियों द्वारा अपनायी जाने वाली विधि स्मरण कराती है।
एक बार फिर पूर्व की ओर मुड़ने पर हम सरगुजा ,उदयपुर तथा छोटा नागपुर की जशपुर रियाशत से होकर गुजरते है जहा हमें अंततः आदिवासीओ का असुर समूह प्राप्त होता है जो पारम्परिक रूप से लोहे का काम करने वाले आदिम लोग है जिनकी एक शाखा आज भी अगरिया नाम रखती है। उदयपुर में लोहे का काम करने वाले अपने आपको (जिसे वे स्वयं कहते है की वह अगरिया का पर्याय है )चोख ,महली ,तथा महली लोहार कहते है। जशपुर में महली लोहार की आबादी ज्यादा है।
पर पश्चिम के अगरिया,मध्य के चोख ,दक्षिण के गोडधुका लोहार तथा तथा पूर्व के असुरो को एक ही आदिवासी समूह मानकर हम कहा तक न्याय कर पाएंगे।
हम लोगो को तत्काल इस बात को मान लेना चाहिए की लोगो के बीच बेशक बहुत सारे अंतर है ,क्योकि हर जगह लोहे का काम करने वाले लोहरो ने अपने अपने पड़ोसियो की बहुत सी आदतों व सामाजिक रीतिरिवाज को अपना लिया है। मंडला में रहने वाले अगरिया बहुत कुछ गोंड और बैगा प्रजातियों से मिलते है जिनके बीच वे रहते है। चोख में छत्तिश्गढ़ में बसने वाले कोरबा तथा गोंडो में बहुत समानता है। छोटा नागपुर के असुरो की वेश भूसा ,त्यौहार ,नृत्य ,तथा गंवई दहलीज भी मुंडा भाषा बोलने वाले पड़ोसियों की तरह है।
परन्तु इन सभी आदिवासियों के साथ पारम्परिक रूप से अगरिया नाम जुड़ा हुआ है और कई बार ये लोग इस नाम का उपयोग भी करते है। ये सभी सामान्य रूप से एक ही प्रकार की स्मिथी ,एक ही सामान के भट्ठी तथा धौकनी प्रयुक्त करते है तथा पैरो से चलाते है। यह सभी कच्चा लोहा बनाते है और उसकी शक्ति व ताकत में गहरा विश्वास रखते है। इनमे से कइयों में सूर्य की रौशनी में काम करना वर्जित है। यद्यपि इन सब बातो को प्रमाणित करना बहुत कठिन है। ,क्योकि निःसंदेह लोहरो के अपने पडोसी समुदायों के साथ पारस्परिक विवाह सम्बन्ध स्थापित हुए है।
अगले भाग में हम आपको महली चोख और अगरिया के बीच संबंध के बारे में चर्चा करेंगे।
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दशरथ प्रसाद अगरिया
संचालक एवं सचिव
राष्ट्रिय लौह प्रगलक अगरिया समाज
महासंघ भारत
मोबाइल -9340400780 ,9754419312
Survey of agaria area
Let us now take a quick survey of the agaria field. To begin with Mandla, in the Dindori Tehsil (now an independent district) in the east of Mandla district, we find Patharia Agariya, we can consider them as "standard" Agariya Agariya. Their culture has a different characteristic and identity which is still safe today. Moving east, "Kalha Agariya" is found in the foothills of Maikal hills in Bilaspur and in remote zamindaris. In the south direction there is Goddhuka blacksmith in Raipur and Agariya of Durg speaks Gondi language. Obviously, all these are related to the occupants living or being found in the mandala on the basis of their physical structure, occupational technique, mythology and religion. In Rewa, north of Mandla, there are Patharia Agaria in which some Mirzapur have settled in Uttar Pradesh. Agaria of Mirzapur. Lohasur worships the Goddess and his technique of smelting iron reminds the method adopted by the mandaris of Mandla.
Turning east again, we pass through the Jashpur riyashtas of Surguja, Udaipur and Chota Nagpur where we finally get the Asura group of tribals who are traditionally iron-working primitive people, whose branch is still in Agaria. Keeps the name. The ironworkers in Udaipur call themselves Chokh, Mahli, and Mahli Lohar (which they themselves say is synonymous with Agariya). Mahli Lohar has a large population in Jashpur.
But if we consider Agaria of the west, Chokha of the middle, Goddhuka Lohar of the south and the Asuras of the east, we will be able to do justice to the same tribal group
We must immediately recognize that there are many differences between people, because ironworkers everywhere have adopted many habits and social customs of their neighbors. Agariya living in Mandla meet a lot of Gond and Baiga species among whom they live. There is a lot of similarity between Korba and Gondo who settled in Chhattishgarh in Chokh. The Asuras of Chota Nagpur disguise, festivals, dance, and the rustic threshold is also like the Munda-speaking neighbors.
But the name Agariya is traditionally associated with all these tribals and many times these people also use this name. All of them normally use the same type of smithy, furnace and blower of the same material and run it by foot. They all make cast iron and believe deeply in its strength and strength. Many of them are prohibited from working under the sunlight. Although it is very difficult to prove all these things. , As Lohro has undoubtedly established mutual marriage relations with his neighboring communities.
In the next part we will discuss you about the relationship between Mahli Chokh and Agariya.
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Dasharatha Prasad Agariya
Director and Secretary National iron smelter
agaria society Federation india
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agariya samaj ki jankari ke liye ye blog taiyar kiya gaya hai agariya samaj sangathan poore bharat ke agariya samaj ko sangathit karna chahta hai