अगरिया आदिवासी
अगरिया शब्द का अभिप्राय संभवतः आग पर काम करने वाले लोगो से है। अथवा आदिवासियों के देवता ,आज्ञासुर से ,जिनका जन्म लौ से हुआ माना जाता है। अगरिया मध्यभारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग है जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते है। लेकिन अगरिया क्षेत्र को डिंडोरी से लेकर नेतरहाट तक रेखांकित किया जा सकता है ,
गोंड बैगा और अन्य आदिवासियों से मिलते जुलते रिवाजो और आदतों के कारन अगरिया की जीवन शैली पर बहुत कम अध्यन किया है। हलाकि उनके पास अपनी एक विकसित टोटमी सभ्यता है और मिथको का भंडार है जो उन्हें भौतिक सभ्यता से बचाकर रखता है। और उन्हें जीवनशक्ति देता है।
अगरिया लोग ,बैगाओं तथा अपने आसपास की आदतों को बराबरी से अपनाते है जो उनके जीवन शैली के अनुरूप होते है। इसका उल्लेख आपको द बैगा पुस्तक जायगा। कभी तो यह भी कहा जाता है की अगरिया बैगा जनजाति के पूरक है।
बैगा किताब में नृत्य के अध्याय को मंडला के अगरियों के लिए भी यथावत लागू किया जा सकता है। गोंड के लिए निर्धारित किनशिप नियम ,वर्जनाये ,वसीयत के नियम ,प्रसव ,माहवारी नियम ,जन्म सम्बन्धी प्रथाएं ,अगरियों में लगभग बिलकुल वैसा ही है।
अगरिया विवाह सामान्यतः ,सात भंवर के बाद ही पूरा होता है कुछ विशिष्ट विशषताओ के साथ सात भंवर का उल्लेख भूमिका में किया गया है।
हलाकि अपने पड़ोसियो से यह सांस्कृतिक सभ्यता यह सिद्ध नहीं करती है लोगो की अलग से अपनी एक खास तथा जीवंत जीवन शैली नहीं है। कुल चिन्हो पर आधारित एक विकसित संगठन के अतिरिक्त उनकी एक विशिष्ट पौराणिकता है जो आदिवासियों की भौतिक वादी संस्कृति नियंत्रित करती है। तथा शक्ति प्रदान करती है। इस कृति में अगरियों का टोना टोटका ,के प्रति विशिष्ट योगदान ,डर तथा टोना टोटका के सम्बन्ध में आदिवासियों की विशिष्टता जिसके बारे में बतलाया गया है की कई बार आदिवासियों के मष्तिष्क पर कष्टकारक प्रभाव डालता है ,ें सब विषयो पर विश्तृत अध्यन किया गया है।
अगरिया वो लोग है जो अपने शिल्प तथा अपनी वस्तुओ में ही मगन रहते है ऐसा लगता है की धौंकानियों की गर्जना तथा लोहे पर पड़ने वाले घनो की झंकार के अलावा उससे अलग उनका जीवन छोटा होता है यद्यपि इनमे कुछ लोग दीर्घयु हुए है। हलाकि उनकी याददास्त कमजोर होती है। उनमे विशिष्ट व्यक्तित्ववाले व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है।
अगरिया अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाने जाते है कुल मिलाकर एक ही आदिवासी है जो एक शाखा और अन्य आदिवासियों की शाखाओ का समूह ही है। यहाँ तक की उनकी एक ही पौराणिकता है। वे एक ही आदि देवता को मानते है। वा पूजा करते है और उनके टोने टोटके भी एक से है अगरिया और असुर उसी आदिवासी समूह के वंशज है जिनका उल्लेख संस्कृत ग्रंथो में असुरो के रूप में किया गया है। और यह संभव है की प्राचीन असुर आदिवासियों ने पहले कभी छोटा नागपुर के मुंडा पूजा पर आक्रमण किया हो और मुंडाओं ने अपने आराध्य देवता सिंगा बोंगा के ध्वज के नीचे ेएकत्रित होकर इस अगरिया आदिवासी समूह को बिहार की सीमाओं तक खदेड़ दिया हो जहा से वे उत्तर तथा पशिचम दिशा में स्थित सरगुजा ,उदयपुर ,कोरिया तथा बिलाषपुर के उत्तर में फैल गए हो तथा कुछ कमजोर शाखाये रायपुर तथा उससे आगे मैकाल पर्वत की श्रृंखलाओं तक आकर बस गए हो। जहा उन्हें पर्याप्त मात्रा में लौह अयस्क की प्राप्ति हुई हो।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
agariya samaj ki jankari ke liye ye blog taiyar kiya gaya hai agariya samaj sangathan poore bharat ke agariya samaj ko sangathit karna chahta hai