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दशरथ प्रसाद अगरिया (संस्थापक) लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के बारे मे ll

                  दशरथ प्रसाद अगरिया  आइये आज जानते है अगरिया आदिवासी समाज के  एक महान समाज सेवी अगरिया जनजाति समाज को एक पहचान देने वाले महान शख्स श्री दशरथ प्रसाद अगरिया (संस्थापक) लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन के बारे मे जिन्होंने अगरिया जनजाति के अस्तित्व, संस्कृति, एवं पहचान को उजागर करने की पहल किये और आज पूरे भारत मे जिन्होंने अगरिया समाज को एक पहचान दिलाने का कार्य किये ll आज इनके अथक प्रयास और मेहनत से आज अगरिया समाज संगठित हुआ जिलों जिलों मे अगरिया समाज की समिति बनी और जिलों मे लोग अपने समाज अस्तित्व के लिए सामाजिक कार्य जागरूकता जैसे गतिविधि करने लगे ll अगरिया समाज मे इनके द्वारा जागरूकता लाने से पहले कभी भी अगरिया समाज मे सामाजिक संगोष्टी, एवं सामाजिक जागरूकता जैसे सामाजिक रहन सहन, शिक्षा, नशा मुक्ति जैसे कोई कार्यक्रम नहीं होता था लेकिन इनके प्रयास के बाद लोगो मे जागरूकता बढ़ी और लोग अपने समाज को बेहतर शिक्षित सभ्य और संस्कारी समाज बनाने तथा सामाजिक रहन सहन को बेहतर बनाने के लिए आज जिलों जिलों म...

अगरिया विकिपीडिआ(अगरियो की चारित्रिक विशेषताएं )

अगरिया विकिपीडिआ  में आज हम अगरियों की चारित्रिक विशेषताओं के बारे में जानेगे। 


अगरिया साधारण प्रजाति के प्रसन्नचित्त लोग होते है। वास्तव में अगरिया लोग बहुत मेहनती होते है। उनके जीवन की परिस्थितिया बहुत संघर्ष मय और पीड़ादायक होती है। एल्विन जी का कहना है की मैंने उनके साथ सुख  सुविधा के बिना,अक्सर कठिन समय बिताया है। जंगलो के बीच लम्बी दूरी तय करना ,पेड़ो को काटना तथा धुओं से भरा थका देने वाला कोयला बनाने का काम ,फिर कोयला से भरा टोकनियों को लादकर वापस घर लौटना -यह सब कोई कम मेहनत का काम नहीं है। वे गड्डे जहा लौह अयस्क खोदा जाता है प्रायः सहजता से पहुंच नहीं जा सकने वाला दुर्गम स्थानों पर होते है। जिसके लिए पहाड़ो की ऊंची चढ़ाइया चढ़नी पड़ती है। फिर उस स्थान पर छोटी सी तंग संकरी जगह में छोटी छोटी गैतियों से खुदाई करनी पड़ती है। बनाने का काम भी बहुत मेहनत का होता है ,अक्सर देखा एवं गौर किया गया है की लोहारो का सारा परिवार ,बहुत तड़के ,सुबह 3 -4 बजे उठ जाता है तथा उसके बाद 10 -11 बजे तक बिना खाना नास्ता के अनवरत काम करते रहते है। जब लोहारो का लम्बा काम समाप्त हो जाता है तो वे कभी कभी खेतो पर भी जाते है या बीड़ी बनाने का काम करते है ,या फिर अपने बनाये सामान को दूरदराज के बाजार में बेचने के लिए उन्हें ढोकर ले जाना पड़ता है। चोख लोगो ने एक नियम सा बना लिया है ,की बड़े बाजार के दिन वो अपने काम से छुट्टी रखते है। 


अगरिया लोग कम से कम वर्तमान में तो पीते नहीं है। लेकिन वे लोग बैगा लोगो की तुलना में बहुत कम शराब पीते है।  बिलासपुर छत्तीसगढ़ में प्रचलित आबकारी नीति के कारन एक समय उन्हें (अगरियों को )गांजा तथा भांग लेने की छूट मिलती है ,आदिवासी लोगो पर मद्य निषेध करना राजनैतिक परिणाम समझ आता है। 

अगरिया लोग मजेदार साथी सिद्ध होते  है जिनका व्यक्तित्व जिनका व्यक्तित्व कई दिनों तक याद किया जा सकता है। 

अगरिया लोग अपने धंधे  दृष्टि से काफी साफ़ सुथरे होते है तथा अपनी भट्ठी को साफ़ सुथरा रखते है। सामान्यतः वे ईमानदार बने रहने आस्था रखते है। परन्तु उनके साथ काम करना बहुत कठिन है और कभी कभी दुखदायी भी ,जानबूझकर वे अज्ञानी नहीं बनते है। परन्तु अधिकांश लोगो के पास कहने के लिए बहुत कम रहता है। इस सबके बाद भी वे बहुत अच्छे कारीगर होते है। और इन्हे आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है। 

अपनी विशेष हस्तशिल्प के कारन उन्हें अन्य आदिवासियों की अपेक्षा बाहरी दुनिया  लिए बहुत काम है। इसलिए उनकी एक कहावत है की "यदि आप सोंचे की लोहा कुछ नहीं है तो आप अपने घर पर एक नजर डाले और आप पाएंगे की यह तीनो लोको में फैला हुआ है "हर जगह लोहा है और यह सबका 'उनका ' ही लोहा है यह सब लोहरीपुर  से आता है। वह वहा पैदा होता है और दुनिया उसे चुराती है। जब हिन्दू राजा भीमसेन ने नगर के नीचे बने सुरंगो में चूहों को भेजा था तो पिघला लोहा बहार आया और वह साड़ी दुनिया में फैल गया। 

अगरिया लोग विषेशकर ट्रैन से बहुत प्रभावित है और इसमें आश्चर्य की बात नहीं है की कोई भी ट्रैन महज लोहा ,आग तथा कोयला से बानी एक चलित भट्ठी के सामान ही है। 

मध्यप्रांत के किसी भी ऐसे अगरिया के बारे में सुनने में नहीं आया की जो धर्म परिवर्तन करके ईसाई बना हो ,परन्तु बिहार के कुछ बियर असुर को कैथोलिक ईसाई में परिवर्तित किया गया। धर्म परिवर्तन के बाद भी बहरी तौर पर उनमे कोई बदलाव नहीं आया। वे जब भी लोहा गलाने तथा लोहा का सामान बनाने की कला को पहले की तरह ,पुराने तरीके से  कर रहे है। अगरिया लोगो की चारित्रिक विशेताएं विशेषताओं का ज्ञान उनके मुहावरों ,कहावतों के अध्ययन से मिलता है ,यद्यपि इस क्षेत्र में वे बहुत प्रवीण नहीं है। बेशक उनको अपने व्यवसाय व कला पर बहुत गर्व है और उनकी शारीरिक बलिष्टता ही उन्हें यह कार्य ,व्यवसाय ,धंधा करने में सक्षम बनती है ,यदि  घान  चलाएगा   तो  आकार क्यों नहीं मिलेगा ,उनके घान ,हथौड़ा चीजल तथा संडासी से लोहे तक को तक को नष्ट किया जा सकता है अगरियों की सामाजिक स्थिति नीची है पर हर कोई उनके पास आता जरूर है। हर कोई उनके पास आकर राम -राम कहता कहता है पर वे जय जोहर कहते है। अगरिया लोग किसी भी गाँव की अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग है और वे इस सच्चाई को जानते है। अगरियों के घर में ही काले लोहे का जन्म हुआ और इसका फायदा साड़ी दुनिया उठती है। 

अगरिया अपने धंधे में डूबा रहता है अगरिया  वह जाने की परवाह नहीं करते है ,उनका सारा नशा उनका घान है। वे अपनी छोटी सी समिति का एक छत्र राजा होता है। संसी आपकी है ,हथौड़ा आपका है ,घान आपका है ,जैसा चाहो वैसा घुमाओ ,हथौड़ा पटको। उनके धंधे में प्यार -व्यार करना बर्बादी ला सकते है ,

एक या दो अध्यनो से पता चल जायगा की अगरिया लोग बहुत सवेदन शील तथा कल्पना शील होते है। जिस तरह ईश्वर अपने बनाये बन्दों के भाग्य की ज्यादा परवाह नहीं करता है। उसी प्रकार धौकनी चलाने  वाला अपनी बनाई चीजों में अंतर नहीं करता। 



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  अगरिया मध्य भारत के वे आदिवासी समुदाय है जो लोहा गलाने यानि की लौह प्रगलक का कार्य करते है उनका मुख्य व्यवसाय लोहे से जुड़ा होता है अगरिया अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते है। अगरिया समुदाय पत्थर से लोहा गलाते है लेकिन वर्तमान  में पत्थर पर सरकार द्वारा रोक लगाया गया  है जिससे उनका व्यवसाय काफी प्रभावित है। अतः अगर वर्तमान की बात करे तो अगरिया समुदाय इस समय अपने क्षेत्र में जिस ग्राम या परिवेश में रह रहे है वही के लोगो का उपयोग की सामग्री बनाकर उनको देते है तथा अपने किसानो का (जिनके ऊपर वे आश्रित है ) समबन्धी समस्तलोहे का कार्य करते है एवं अपने मेहनत का पैसा या खाद्यान्न लेकर अपने एवं अपने बच्चो का पालन पोषण कर रहे है। अगरिया समुदाय की पहचान अभी भी कई जगह में एक समस्या है है कई जगह उनको गोंड भी कह दिया जाता है ,लेकिन ऐसा कहना किस हद तक सही है पर  ,हां अगरिया को गोंडो का लोहार जरूर कहा जाता है लेकिन वास्तव में में अगरिया गोंड नहीं है बल्कि  गोंडो की उपजाति है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग है जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत...