अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति (Origin of Agariya tribal community: -) सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सीधी मध्यप्रदेश के ग्राम सोनगढ़ मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान संपन्न हुआ दिनांक 31/03/2025 को ll लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन

लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन का प्रमुख कार्यक्रम अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम जो फाउंडेशन से जुड़े लगभग सभी राज्यों के जिलों मे प्रति वर्ष माह मार्च - अप्रैल मे संपन्न होता है ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन की ओर से प्रत्येक जिले के नोडल कार्यकर्ता अधिकारी नियुक्त किये जाते है जो जिलों मे उपस्थित होकर कार्यक्रम को सम्पन्न कराते है ll नियुक्त नोडल द्वारा फाउंडेशन के एजेंडा को विश्लेषण करते हुए उपस्थित सामाजिक स्वजातीय बंधुओ को विधिवत समझाया जाता है और कार्यक्रम के अंत मे उपस्थित स्वजातीय बंधुओ को शपथ ग्रहण करवाया जाता है ll  अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम का उद्देश्य अगरिया जनजाति जो की आज के इस आधुनिक परिवेश मे भी शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी, सामाजिक रहन सहन मे पिछड़ी जनजाति है जिसके स्तर मे सामाजिक जागरूकता के लिए इस कार्यक्रम को आयोजित कराया जाता है जिससे इस समाज मे जागरूकता आ सके और समाज सशक्त हो सके ll ज़िला सीधी के ग्राम सोनगढ़ मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम का आयोजन  दिनांक 31/03/2025 को हुआ ll जहाँ ज़िला सीधी के लिए नियुक्त नोडल...

अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति (Origin of Agariya tribal community: -)

 अगरिया आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति :-


कोरबा के अगरिया 👇👇👇👇👇 

अब हम एक महत्वपूर्ण और कठिन समस्या की और ध्यान देते है की वास्तव में ये अगरिया कौन है क्या  ही आदिवासी है ,क्या वैसे आदिवासी है जैसे होने चाहिए ,अपने आप में जो पहले ही अस्त्तिव में आ गए थे।  संभवतः लोहे की खोज या जानकारी के समय या सेन्ट्रल प्राविन्स में लोहे  की जानकारी प्राप्त होने के समय ,अथवा क्या वे साधारण तौर पर अनेक विभिन्न आदिवासी समूहों के सदस्यों का जमावड़ा है ,जिन्होंने लोहा गलाने का काम चुन लिया है. क्या डिंडोरी मंडला अनूपपुर शहडोल सीधी  सिंगरौली के अगरिया वही अगरिया है जो गोंडो की एक शाखा है जिन्होंने लोहे का काम करना शुरू कर दिया है।  और इसलिए धीरे धीरे वे एक विशेष समुदाय के रूप में अलग हो गए है। बिलासपुर के चोख अगरिया कोरबा उपजाति से बहुत मिलते जुलते है ,क्या वे कोरबा छत्तीसगढ़ जनजाति का ही एक अलग वर्ग है जिन्होंने लोहा गलाने का काम सुरु कर  दिया है। 



हम भारत के कुछ अन्य जगह के समस्याओं को रख कर बात कर सकते है। रिसले ने बताया है की बिहार तथा पशिचम बंगाल के  लोहार किस प्रकार एक बड़ा और मिश्रित समुदाय है। जिसमे अलग अलग आदिवासियों ,जातियों प्रजातियों के सदस्य है जिन्होंने देश के अलग अलग हिस्सों में लोहे से सम्बंधित कार्य हाँथ में  लिया है।  इसीलिए संभवतः कोकास लोहार बरही है जिन्हे अपने मूल समूह से अलग होना पड़ा।  जिसमे अगर बात करे तो कमरकल्ला लोहार भी सोनार प्रजाति से निकली एक पिछड़ी उपजाति है।  उसी प्रकार लोहार दग्गा के मंझाल तुइया तुरी प्रजाति की एक शाखा हो सकती है। 

बस्तर में आज यह प्रक्रिया वास्तव में कार्यरत लोगो में देखि जा सकती है बस्तर के मारिया लोहारो के बारे में   कहते है की यह लोहार मारिया प्रजाति  है ,वे मारिया भाषा बोलते है ,विशेष शारीरिक बनावट से इन्हे पहचाना  जा सकता है तथा इनके गोत्र तथा पूर्वज मूलतः एक ही है तथा वह उनकी जैसे ही रीति रिवाज परम्पराओ का अनुपालन  करते है।  प्रत्येक प्रकरण  जानकारी प्राप्त करने पर पता चला की आज लोहारो का काम करने वाले मूलतः कृषक थे या फिर उनके पिता या कोई पूर्वज मूलतः खेतीबाड़ी का काम करने वाले थे। कुछ प्रकरणों में ें लोहारो ने कृषको की बेटियों को अपनी पत्नी बनाया था।  परन्तु ऐसी सभी शादियां भागकर ,वो भी लड़की के पिता की सहमति प्राप्त किये बिना की गयी है।  अन्य प्रकरणों में कुछ किसानी का कार्य करने वाले नवयुवको ने लोहारो की लड़किया पत्नी के रूप में पाने के लिए लोहारी का काम करना शुरू कर दिया था।  हल्बा और तेलंगा के पडोसी अपने आपको कमार जाती का बतलाते है परन्तु जहा तक इस शब्द का प्रश्न है यह व्यवसाय  सम्बंधित शब्द ही है परन्तु किसी विशेष कारन से आदिवासी लोग ,लोहारो को हेय द्रिष्टी  से देखते है। और जैसे ही जब भी कोई मारिया इस व्यवसाय को अपनाता है तब वह अपने साथी लोहारो के साथ या तो अलग गांव में या झोपड़ियों के समूह में रहना शुरू कर  देता है अथवा फिर  अपने ही गांव में उन्हें अलग थलग कर दिया जाता है।  

यह स्वाभाविक ही है की जहा कही भी ,किसी व्यवसाय ,धंधे के लिए सामाजिक निषेध है ,ऐसे कार्य अपनाने वाले एक नए आदिवासी समूह का विकास बहुत तेजी से होता है। कोरबा आदिवासी प्रजाति का एक उपवर्ग अगरिया कोरबा रिसले के समय से ही विदित था जो सरगुजा ,जशपुर तथा पलामू के इलाको में बहुतायत से पाया जाता था  अगरिया कोरबा प्रजाति का आदिवासी सम्मूह स्वयं के द्वारा पिघलाय लोहे से कुल्हाड़ी बनाया करता था तथा ऐसी प्रकार बिंझिया का एक समूह अगरिया बिंझिया कहलाता था।  यह दोनों दोनों समूह संभवतः अब मुख्य अगरिया आदिवासियों  समूह में घुलमिल गए है। सवारा प्रजाति का एक वर्ग है जो लुआरा या मूली कहलाता है। जो लोहे का काम करता है तथा मूल आदिवासी समूह से अलग हो गया है। उसी प्रकार कुछ खारिया लोग लौह अयस्क को पिघलाकर लोहा निकालने का कार्य करते है। परन्तु वे अभी तक अलग वर्ग नहीं बन पाए है। श्री एस सी राय का मानना है  वर्तमान समय के बिहार के असुर मूलतः मुंडा या कोल प्रजाति के भाग ही है। जिन्होंने आदिम असुर प्रजाति के काम धंधो  आदिवासी नाम के साथ ग्रहण कर लिया है। 

तो फिर ये अगरिया हैं क्या -क्या गोंड आदिवासियों की ही एक शाखा है जैसा की रसेलमानते है  का मानना है। जो उसी तरह संगठित है जैसा की ग्रिग्सन ने मारिया प्रजाति में देखा पाया  है वर्ष 1891 में सर बी राबर्टसन ने अगरिया लोगो को गोंडो से जुड़े आदिवासी के रूप में वर्गीकृत किया था। उदाहरण के लिए भटाररा ,मुड़िया ,तथा मारिया तथा उन्होंने यह भी पाया था की सेन्ट्रल प्राविन्स में अगरिया लोगो को गोंडो की तरह ही देखा व जाना जाता है  स्वयं को इसी रूप में बतलाते व  मानते है। 

        

      भाग -2 अगले भाग में पढ़िए।  .. . . . . . . . . . . . . . . . 


 अगरिया समाज संगठन भारत  के मोबाइल  एप्प  को इंस्टाल कीजिये   प्ले   स्टोर  में  जाकर  अगरिया समाज संगठन भारत सर्च कीजिये  दिए लिंक से एप्प को इंस्टाल कीजिये 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.app.agariyasamajsangathanbharat

 अगरिया समाज  संगठन भारत कुटुंब ग्रुप से जुड़े 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://kutumb.app/rashtriya-loh-praglak-agraiya-samaj-mahasangh-bharat?slug=a44ca655d8fe&ref=WM0PL


अगरिया समाज संगठन भारत के यू ट्यूब पर जाय  और सब्स्क्राइब  करे एवं अगरिया समाज संगठन  से  जुड़े समस्त गतिविधिया देखे  यू ट्यूब के सर्च बार में अगरिया  समाज संगठन भारत सर्च करे। 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇https://youtube.com/c/agariyasamajsangathanmpandcg



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

agariya samaj ki jankari ke liye ye blog taiyar kiya gaya hai agariya samaj sangathan poore bharat ke agariya samaj ko sangathit karna chahta hai

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए ...

मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी

  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी  1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या-  मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।   2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है।  3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे - https://youtu.be/D5RSMaLql1M   )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल  आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है।  4-...

agariya kaoun haiअगरिया कौन है

  अगरिया मध्य भारत के वे आदिवासी समुदाय है जो लोहा गलाने यानि की लौह प्रगलक का कार्य करते है उनका मुख्य व्यवसाय लोहे से जुड़ा होता है अगरिया अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते है। अगरिया समुदाय पत्थर से लोहा गलाते है लेकिन वर्तमान  में पत्थर पर सरकार द्वारा रोक लगाया गया  है जिससे उनका व्यवसाय काफी प्रभावित है। अतः अगर वर्तमान की बात करे तो अगरिया समुदाय इस समय अपने क्षेत्र में जिस ग्राम या परिवेश में रह रहे है वही के लोगो का उपयोग की सामग्री बनाकर उनको देते है तथा अपने किसानो का (जिनके ऊपर वे आश्रित है ) समबन्धी समस्तलोहे का कार्य करते है एवं अपने मेहनत का पैसा या खाद्यान्न लेकर अपने एवं अपने बच्चो का पालन पोषण कर रहे है। अगरिया समुदाय की पहचान अभी भी कई जगह में एक समस्या है है कई जगह उनको गोंड भी कह दिया जाता है ,लेकिन ऐसा कहना किस हद तक सही है पर  ,हां अगरिया को गोंडो का लोहार जरूर कहा जाता है लेकिन वास्तव में में अगरिया गोंड नहीं है बल्कि  गोंडो की उपजाति है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग है जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत...