लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन का प्रमुख कार्यक्रम अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम जो फाउंडेशन से जुड़े लगभग सभी राज्यों के जिलों मे प्रति वर्ष माह मार्च - अप्रैल मे संपन्न होता है ll जहाँ लौह प्रगलक अगरिया जनजाति भारत फाउंडेशन की ओर से प्रत्येक जिले के नोडल कार्यकर्ता अधिकारी नियुक्त किये जाते है जो जिलों मे उपस्थित होकर कार्यक्रम को सम्पन्न कराते है ll नियुक्त नोडल द्वारा फाउंडेशन के एजेंडा को विश्लेषण करते हुए उपस्थित सामाजिक स्वजातीय बंधुओ को विधिवत समझाया जाता है और कार्यक्रम के अंत मे उपस्थित स्वजातीय बंधुओ को शपथ ग्रहण करवाया जाता है ll अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम का उद्देश्य अगरिया जनजाति जो की आज के इस आधुनिक परिवेश मे भी शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी, सामाजिक रहन सहन मे पिछड़ी जनजाति है जिसके स्तर मे सामाजिक जागरूकता के लिए इस कार्यक्रम को आयोजित कराया जाता है जिससे इस समाज मे जागरूकता आ सके और समाज सशक्त हो सके ll ज़िला सीधी के ग्राम सोनगढ़ मे अगरिया समाज जोड़ो अभियान कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 31/03/2025 को हुआ ll जहाँ ज़िला सीधी के लिए नियुक्त नोडल...
अगरिया जनजाति के देवता कौन है। अगरिया जनजाति के देवता लोहासुर
लोहासुर देवता के बारे में (अगरिया जनजाति का प्रमुख देवता)
लोहासुर के सम्बन्ध में कई कहावत है कई महान वैज्ञानिको ने अपने लेख में लिखे है जिनमे से मै यहाँ दो।
प्रमुख कहानियो को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हु। तो आइये जानते है लोहासुर कौन है -
भाग-१
दोस्तों अगरिया आदिवासी समुदाय में लोहासुर का प्रमुख स्थान है अगरिया आदिवासी समुदाय लोहासुर को अपना देवता मानते है। यदि आप अपने क्षेत्र में अगरिया आदिवासी को जानते है तो पूछियेगा वो लोहासुर को अपना प्रमुख आराध्य देवता मानते है मुर्गी सूअर इत्यादि की बलि भी देते है।
तो आइये जानते है लोहासुर कौन है और अगरिया आदिवासी के प्रमुख देवता के रूप में कैसे जाने जाते है।
दोस्तों इसके सम्बन्ध में कहानी किवदंती है जो मै आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु -
एक बार करिया कुंवर अपनी भट्ठी धौक रहा था तभी उसने अपने धौकनी में से एक रोते हुए बच्चे की आवाज सुनी। उसने अपना पांचा भट्ठी में डाला और बच्चे को बाहर निकाला। बच्चा तपती आग की तरह गर्म था ,अतः करिया कुंवर बच्चे को पकड़ नहीं पाया। करिया कुंवर ने बच्चे से पूछा -तुम कुछ खाओगे या पियोगे ,बच्चे ने कहा -हां मै तुम्हारे सबसे बड़े लड़के को खाऊंगा।
यह सुनकर करिया कुंवर कहता है नहीं ,मै तुम्हे उसे नहीं दूंगा -
यह सुनकर बच्चा आगबबूला हो गया। वह खड़ा हो गया और बोला -मेरा नाम लोहासुर है। मुझे खाने के लिए काली गाय लाकर दो नहीं तो मई तुम्हारे सारे बेटो को खा जाउगा। करिया कुंवर भाग कर जानवरो के बाड़े में गया और एक काली गाय लेकर आया। फिर लोहासुर ने कहा -अब तुम मुझे रहने के लिए कोई जगह दो। करिया कुंवर गुस्से में था इसलिए बोले वही तुम्हारी जगह है जहा से तुम आये हो `, जैसे ही करिया कुंवर ने ऐसा कहा ,लोहासुर वह से अंतरध्यान हो गया।
करिया कुंवर ने काली गाय भट्ठी से बाँध दी और थोड़ी देर बीड़ी पीने तथा अपने साथियो के साथ गपसप मारने चला गया। जब लौटा तो उसने देखा की बिना सर की काली गाय भट्ठी से बंधी पड़ी है यह देखकर करिया कुंवर बहुत भय भीत हो गया। उसने गाय को एक लकड़ी मारी जिससे खून बहने लगा। करिया कुंवर ने अपनी दाए हाथ की चौथी अंगुली से थोड़ा खून लगाया और अपने माथे पर खून का टीका लगाया तथा थोड़ा सा खून भट्ठी पर छिड़का। फिर उसने गाय को जमीन में दफना दिया।
यह कहानी करंजिया क्षेत्र की दलदल से प्राप्त यह स्थापित करती है की लोहासुर के सम्मान में गाय की बलि चढ़ाई गयी थी। अब अगर वर्तमान में कहे तो बलि में बदलाव आया है कही कही सुवर ,मुर्गी इत्यादि की बलि चढ़ाई जाती है।
भाग -२
आइये अब लोहासुर के सम्बन्ध में दूसरी प्रचलित कहानी पर बात करते है।
जब लोहासुर का जन्म भट्ठी से हुआ था तो वह बच्चे की तरह रोया था पर कोई समझ नहीं पाया था की आखिर बात क्या है -बारहो अगरिया भाई कोयले का धुंवा पीकर बेहोश पड़े थे। उस समय लोहासुर कांव कांव चिल्ला रहा था पर कोई उसकी बात समझ नहीं पा रहा था। इस पर लोहासुर नाराज होकर जहा कोदो का ढेर बिछा हुआ था वह वाहा जाकर खेलने लगा। तभी एक बूढ़ी गोडिन सिर पर छांछ का मटका लिए वहा गुजरी। उसने देखा की लोहासुर कोदो के ढेर पर खेल रहा है वह अगरिया भाइयो के पास गयी तथा नशे में पड़े सभी भाइयो को थोड़ा थोड़ा मठा पिलाया और जब वे होश में आये तो उसने सब भाइयो से कहा -उठो लोहासुर का जन्म हो गया है। आओ ,जल्दी से एक काली गाय लाओ और भट्ठी से बांध दो तथा अपनी भट्ठिओ को भूसे से भर दो और जोर जोर से चिल्लाओ :आओ लोहासुर भवानी। मै आपको भोजन देता हु। मै आपको रहने का जगह देता हु। आप कृपया यहाँ पधारे और यहाँ रहे। यदि तुम सब लोग मिलकर ऐसा कहोगे तो ही लोहासुर यहाँ आएगा ,ऐसी बूढ़ी औरत बोली।
सभी अगरिया भाइयो ने ऐसा ही किया तब लोहासुर आया और भट्ठी के कोदो बैठ गया। अगरिया भाइयो ने काली गाय की बलि की चढ़ाई ,और उसके खून को अपने माथे पर लगाए और भट्ठी पर भी चढ़ाया।
इस कहानी में विशेष रूप से जो कोदो के भूसे का उल्लेख किया गया है महत्त्व आपको आगे स्पष्ट किया गया है जो मंडला जिले के करंजिया क्षेत्र के दादर गांव से प्राप्त हुई थी
बारह अगरिया भाइयो ने भट्ठी में लौह युक्त पत्थर भर दिए तथा आठ दिन नौ रात तक उस भट्ठी में आग जलाये रखी। परन्तु लोहा बनकर बाहर नहीं आया। बनने वाला पिघला लोहा गुप्त रूप से बहकर कोदो के भूसे के ढेर के साथ खेलने चला जाता था। तभी वहा एक बूढी औरत आयी और इन अगरिया भाइयो से बोली -मेरे बच्चो क्या कर रहे हो -लोहा तो बनकर निकल रहा है और कोदो के भूसे के ढेर के साथ खेल रहा है। यह बात सुनकर सभी भाइयो ने उस बूढी औरत का मजाक उड़ाया। पर बार बार वह यही दोहराती रही -नहीं नहीं वह वह कोदो के ढेर पर टहल रहा है। अंततः एक भाई ने वह जाकर देखा तो पाया की लोहासुर वाकई भूसे के ढेर पर खेल रहा है। उस भाई ने लोहासुर को उठाया परन्तु उसका हाथ टूट गया। उसके बात सरे भाई वह गये और किसी तरह लोहासुर को भट्ठी में रखा ,पर थोड़ी लोहासुर फिर उसमे से निकल कर भूसे के ढेर के साथ खेलने लगा।
फिर लोहासुर सपने में आया और बोला -तुम लोग अपनी भट्ठी में कोदो रखने की जगह बनाओ ताकि मै वहा आराम से बैठ सकू। उन लोगो ने वैसा ही किया तब कही जाकर लोहासुर वहा बैठा। लोहासुर कुंवारी कोदो के भूसे से शादी करना चाहता था और उसके प्रति प्रेम के कारन ही वह कोदो के भूसे के ढेर पर खेलने जाया करता था। इसलिए आज तक यदि भट्ठी में ठीक से कोदो के भूसे को नहीं जमाया जाय तो लोहा ठीक से नहीं निकलता है।
यहाँ इस कहानी को आधार मानकर लोहा गलाने की तकनीक को रोचक विवरण दिया गया है लोहा बनाने के पूर्व भट्ठी में उपयुक्त आधार होना चाहिए ,जिस पर लौह युक्त पत्थर अच्छी तरह रखा सके। चुकी कोदो का भूसा बहुत चिकना होता है ,अतः इस प्रकार के कार्य करने के लिए उपयुक्त होता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
agariya samaj ki jankari ke liye ye blog taiyar kiya gaya hai agariya samaj sangathan poore bharat ke agariya samaj ko sangathit karna chahta hai