समाज मे सभी बदलाव लाना चाहते है उसके लिए समय दान आवश्यक है सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है ll

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है 👇 अगरिया जनजाति में लोहा का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह जनजाति मूल रूप से लोहा पर काम करते है और कृषक भी है। लोहा उनकी जीवनशैली और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो अगरिया जनजाति में लोहे के महत्त्व को दर्शाती हैं: 1. लोहारी का काम: अगरिया जनजाति के लोग मुख्य रूप से लोहारी का काम करते हैं, जिसमें वे लोहे को पिघलाकर और आकार देकर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं। 2. कृषि के लिए लोहे का उपयोग: अगरिया जनजाति के लोग कृषि में भी लोहे का उपयोग करते हैं, जैसे कि हल, कुदाल, और अन्य कृषि उपकरण बनाने में। 3. शस्त्र निर्माण: अगरिया जनजाति के लोग लोहे से शस्त्र भी बनाते हैं, जैसे कि तलवार, भाला, और अन्य हथियार। 4. धार्मिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का धार्मिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं। 5. सांस्कृतिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का सांस्कृतिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को अपनी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।

समाज मे सभी बदलाव लाना चाहते है उसके लिए समय दान आवश्यक है

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
👉🏻संगठन की बस एक आवाज़ संगठित हो अपना अगरिया समाज
🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴
आज हर समाज संगठित हो रहा है और अपने समाज को मजबूत बना रहे है अपने समाज मे बदलाव कर रहे जिसका प्रभाव देखने को मिलता है की समाज मे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, समाज मे नशा कम हो रहा है, समाज मे एक दुसरे के प्रति मान सम्मान बढ़ रहा है, समाज संस्कारी जो रहा है, तो हमारा समाज क्यों पीछे रहे क्या हम मे लोगो को जागरूक करने की क्षमता नहीं है क्या हम पढ़े लिखें नहीं है या फिर हमारे पास संगठन नहीं है या फिर हमारे समाज के सामाजिक बंधु समाज के प्रति सकारात्मक नहीं है या समाज मे महिलाये अपना योगदान नहीं देना चाहते यदि ये सब बात होगा तो संगठन को सोचना होगा कार्यकर्ताओ को सोचना होगा, वीरँगनाओ को सोचना होगा, समाज मे आगे आना होगा, आज समाज की आवाज़ है की आइये इस विलुप्त होते समाज के अस्तित्व को बचाइये ये एक गौरव शाली समाज है जिसका इतिहास पूर्व से आदरणीय था और आगे भी आदरणीय रहेगा बस यदि कदर नहीं है तो हमको ll पहचानिये अपने समाज के उन बिन्दुओ को जहाँ आपको कार्य करने की आवश्यकता है, अपने आप को अपने लोगो को संगठन मे लाइये, समय निकालिये क्योंकि समय की मांग है इस समाज का की समय का दान करें ll और जिसने भी समाज मे समय का दान किया है वो और उसका नाम इतिहास मे अमर हुआ है ll साथिय प्रयास एक संगठित समाज का जारी है और जारी रहेगा लेकिन हमारा योगदान क्या है ये भी तो देखना होगा क्योंकि 2-4 लोगो के आगे रहने या करने से कुछ नहीं होगा सभी को आगे आना होगा ll अतः समय दान कीजिये संगठन की मीटिंग को अटेंड कीजिए जो ऑनलाइन होता है, वेबसाइट मे समाज की न्यूज़ पढ़िए लोगो को भेजिए, यू ट्यूब मे विडिओ देखिए  लोगो को भेजिए और संगठन के साथ जोड़िये और समाज को जागरूक बनाइये ll
👉🏻🪴तो आइये सभी मिलकर एक संगठित समाज का निर्माण करें और कल की मीटिंग को सफल बनाये ll
🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
👉🏻बोलिये भारत माता की जय
👉🏻बोलिए अगरिया समाज की जय
🪴🪴🌿🌿🌿❤🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
गर्व से कहो हम अगरिया है
🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴
वन्देमातरम जय भारत
🪴अगरिया समाज संगठन भारत🪴

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए थे। उन्होंने आपस  कर ली लोगुन्दी राजा के अपने एक बेटा बेटी थे। ें लोगो ने हल्दी बोई

agariya kaoun haiअगरिया कौन है

  अगरिया मध्य भारत के वे आदिवासी समुदाय है जो लोहा गलाने यानि की लौह प्रगलक का कार्य करते है उनका मुख्य व्यवसाय लोहे से जुड़ा होता है अगरिया अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते है। अगरिया समुदाय पत्थर से लोहा गलाते है लेकिन वर्तमान  में पत्थर पर सरकार द्वारा रोक लगाया गया  है जिससे उनका व्यवसाय काफी प्रभावित है। अतः अगर वर्तमान की बात करे तो अगरिया समुदाय इस समय अपने क्षेत्र में जिस ग्राम या परिवेश में रह रहे है वही के लोगो का उपयोग की सामग्री बनाकर उनको देते है तथा अपने किसानो का (जिनके ऊपर वे आश्रित है ) समबन्धी समस्तलोहे का कार्य करते है एवं अपने मेहनत का पैसा या खाद्यान्न लेकर अपने एवं अपने बच्चो का पालन पोषण कर रहे है। अगरिया समुदाय की पहचान अभी भी कई जगह में एक समस्या है है कई जगह उनको गोंड भी कह दिया जाता है ,लेकिन ऐसा कहना किस हद तक सही है पर  ,हां अगरिया को गोंडो का लोहार जरूर कहा जाता है लेकिन वास्तव में में अगरिया गोंड नहीं है बल्कि  गोंडो की उपजाति है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग है जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते है लेकिन अगरिया क्

अगरिया गोत्र agariya gotra

  अगरिया समाज गोत्र  अगरिया समाज  आदिम मानव काल की प्रजाति है जो प्राचीन काल से  लौह  का प्रगलन करते आया है आज भी अगरिया आदिवासी समुदाय लोहे का व्यवसाय अपनाया हुआ है जो अगरिया आदिवासी की मुख्य व्यवसाय है लोहे की सम्मग्री बनाना लोहे के साथ आग पर काम करना आज भी सतत रूप से जारी है।   अगरिया समाज में कई गोत्र है जो कई प्रकार के है नीचे पढ़िए अगरिया समाज का सम्पूर्ण गोत्रावली  सोनवानी , सनवान ,सोनहा , 2 -अहिंदा , अहिंदवार , अहिंधा 3-चिरई , छोटे चिरई  4 -रन चिरई  5 -मराई ,मरावी ,मरई (7 देवता ) 6 -गैंट ,कांदा ,बेसरा  7 -पोर्ते ,पोरे  8 -टेकाम                ९ -मरकाम    10 - धुर्वे , कछुआ ,धुरवा     11-गुइडार ,गोहरियार ,गोयरार    12 -गिधली , गिधरी   13 - नाग   14 -परसा   15 -गढ़कू ,गोरकु   16 - बरंगिया , बरगवार                                    17 -कोइलियासी   18 -बाघ ,बघेल   19 -खुसरो ,खुसर   20 -मसराम  21 -पन्द्रो   22 -परतेती 23 -पोट्टा   24 -श्याम (7 देवता )  25 -तिलाम   26 -कोरचो   27-नेताम (4 देवता )  28 -भैरत ,भरेवा ,भवानर        29 -दूधकावर  30-कुमुन्जनि ,मुंजनी ,मुंजना (वृक्ष )  31 -मह