ज़िला छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम राष्ट्रीय लौह प्रगलक अगरिया समाज महासंघ भारत मे मार्गदर्शन मे ll सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है ll

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है 👇 अगरिया जनजाति में लोहा का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह जनजाति मूल रूप से लोहा पर काम करते है और कृषक भी है। लोहा उनकी जीवनशैली और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो अगरिया जनजाति में लोहे के महत्त्व को दर्शाती हैं: 1. लोहारी का काम: अगरिया जनजाति के लोग मुख्य रूप से लोहारी का काम करते हैं, जिसमें वे लोहे को पिघलाकर और आकार देकर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं। 2. कृषि के लिए लोहे का उपयोग: अगरिया जनजाति के लोग कृषि में भी लोहे का उपयोग करते हैं, जैसे कि हल, कुदाल, और अन्य कृषि उपकरण बनाने में। 3. शस्त्र निर्माण: अगरिया जनजाति के लोग लोहे से शस्त्र भी बनाते हैं, जैसे कि तलवार, भाला, और अन्य हथियार। 4. धार्मिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का धार्मिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं। 5. सांस्कृतिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का सांस्कृतिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को अपनी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।

ज़िला छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम राष्ट्रीय लौह प्रगलक अगरिया समाज महासंघ भारत मे मार्गदर्शन मे ll

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण ज़िला छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश मे (अगरिया समाज संगठन भारत के नेतृत्व मे )
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पहाड़ , जंगल, ज़मीन, आदिवासियों की धरोहर पूर्व से ही रही है,आदिवासी अनादिकाल से ही प्रकृति प्रेमी रहे है  पर्यावरण को को संरक्षित करना एवं अपने जीवन यापन के लिए आदिवासी हमेशा से पर्यावरण पर निर्भर रहा है अब अगर हम अगरिया जनजाति की बात करें तो अगरिया जनजाति का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से पूर्व से ही रहा है, आप सभी जानते है की अगरिया जनजाति ने लौह अयस्क जैसे पत्थर, लकड़ी, बालू इत्यादि से लोहा बनाया और दुनिया को सबसे पहले अवगत कराया यानी की लोहा बनाने वाली सबसे पहली जनजाति अगरिया जनजाति ही है ll यानि की अगरिया आदिवासी पूर्व से ही जंगलो मे निवास करते थे और अपने जीवन यापन के लिए जंगलो पर निर्भर रहते थे, जहाँ से उनको लौह अयस्क एवं लौह प्रगलन हेतु कई सुविधा मिलता रहा है जिससे अगरिया जनजाति अपना जीवन यापन करते थे ll यानि की कहे तो अगरिया जनजाति का सीधा सम्बन्ध प्रकृति, पर्यावरण से रहा है अब जहाँ अगरिया जनजाति का ज़ब सीधा सम्बन्ध पर्यावरण से रहा है तो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अगरिया जनजाति सकारात्मक पूर्व से रहा है ll
उसी के सम्बन्ध मे अगरिया समाज संगठन भारत (राष्ट्रीय लौह प्रगलक अगरिया समाज महासंघ भारत) की ओर से 5 जून 2022 को विश्व पर्यावरण दिवस पर संगठन अंतर्गत सभी जिलों मे वृहद स्तर पर वृक्षारोपण का आयोजन किया ll जिसमे से सभी जिलों के प्रत्येक ब्लॉक मे कम से 10-10 पौधों का रोपण किया जाना था जिसमे से ज़िला छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) जो की संगठन के साथ जुडा ज़िला है जहाँ से जिलाध्यक्ष श्री सुखराम उइके जी एवं उपाध्यक्ष श्री रामराहीस खुसरिया जी नेतृत्व मे सम्पूर्ण ज़िला छिंदवाड़ा के सामाजिक बंधुओ ने इस वृक्षारोपण के महाभियान जो अगरिया समाज संगठन भारत की ओर से संचालित किया गया था सपरिवार हिस्सा लिए और वृक्षारोपण किये ll

बात करने पर श्री सुखराम उइके जी द्वारा बताया गया की अगरिया समाज संगठन अगरिया समाज के उत्थान एवं विकास के साथ साथ राष्ट्रीय हित, सार्वजानिक कार्य मे भी आगे है और हमेशा संगठन द्वारा वृक्षारोपण का कार्यक्रम आगामी दिनों मे आयोजित होगा ll सुखराम उइके जी ने राष्ट्रीय संगठन के समस्त पदाधिकारियों का आभार प्रकट करते हुए बोले की संगठन द्वारा ये सार्वजानिक हित का कार्य अत्यंत प्रसंसनीय है और ज़िला छिंदवाड़ा सदैव राष्ट्रीय संगठन के विचार धारा का सम्मान करेगा ll उन्होंने कहा  वृक्षारोपण एक सार्वजानिक हित का कार्य है जिसमे अगरिया समाज तो इस कार्य मे आगे है ही अतः सभी को देश के हर नागरिक को वृक्षारोपण करना चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण संरक्षित हो और मानव जीवन सुरक्षित रहे तथा वृक्ष हमें फल, फूल, पुष्प, लकड़ी, औषधि, छाया, आवास इत्यादि उपलब्ध भी कराते है उन्होंने कहा ll अतः ज़िला छिंदवाड़ा अगरिया समाज अपने संस्कृति, परंपरा, रीति रीवाज को अपनाये अपने अस्तित्व की प्राप्ति चाहता है ll और सतत राष्ट्रीय संगठन की विचार धारा के साथ चलेगा ll
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