मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है ll

अगरिया जनजाति मे लोहा का क्या महत्त्व है 👇 अगरिया जनजाति में लोहा का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह जनजाति मूल रूप से लोहा पर काम करते है और कृषक भी है। लोहा उनकी जीवनशैली और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो अगरिया जनजाति में लोहे के महत्त्व को दर्शाती हैं: 1. लोहारी का काम: अगरिया जनजाति के लोग मुख्य रूप से लोहारी का काम करते हैं, जिसमें वे लोहे को पिघलाकर और आकार देकर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं। 2. कृषि के लिए लोहे का उपयोग: अगरिया जनजाति के लोग कृषि में भी लोहे का उपयोग करते हैं, जैसे कि हल, कुदाल, और अन्य कृषि उपकरण बनाने में। 3. शस्त्र निर्माण: अगरिया जनजाति के लोग लोहे से शस्त्र भी बनाते हैं, जैसे कि तलवार, भाला, और अन्य हथियार। 4. धार्मिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का धार्मिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं। 5. सांस्कृतिक महत्त्व: अगरिया जनजाति में लोहे का सांस्कृतिक महत्त्व भी है, क्योंकि वे लोहे को अपनी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।

मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी

 मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति एवं अगरिया जनजाति के बारे में जानकारी 


1 -अगरिया जनजाति की मध्य प्रदेश में जनसँख्या- मध्य प्रदेश में अगरिया जनजाति की जनसँख्या लगभग 41243 है जो प्रदेश की कुल जनसँख्या का 0.057  प्रतिशत है।  

2 -अगरिया निवास क्षेत्र -अगरिया वैसे मध्यप्रदेश के कई जिलों में पाए जाते है पर मुख्यतः अधिक संख्या में अनूपपुर ,शहडोल उमरिया ,कटनी ,मंडला ,बालाघाट ,सीधी ,सिंगरौली में मुख्यतः पाए जाते है। 

3 -अगरिया गोत्र -अगरिया जनजाति में कुल 89 गोत्र पाए जाते है। (सम्पूर्ण गोत्र की जानकारी के लिए यू ट्यूब पर अगरिया समाज संगठन भारत सर्च करे और विडिओ देखे )(विडिओ देखने के लिए लिंक पर क्लीक करे -https://youtu.be/D5RSMaLql1M  )जिनमे से कुछ  प्रमुख गोत्र है सोनवानी ,अहिंद ,धुर्वे ,मरकाम ,टेकाम ,चिरई ,नाग ,तिलाम ,उइके,बघेल आदि है प्रत्येक गोत्र में टोटम पाए जाते है। एवं अगरिया जनजाति का प्रत्येक गोत्र प्राकृतिक से लिया गया है अर्थात पेड़ पौधे ,जीव जंतु से ही लिया गया है। उदाहरण के लिए जैसे बघेल गोत्र बाघ से लिया गया है। 

4-अगरिया जनजाति का रहन सहन -इनके घर मिटटी के होते है।  उन पर घास फूस या देशी खपरैल का छप्पर  होता है।  तीन कमरे होते है। दीवारों पर सफेद या पीली या गेरुआ मिटटी की पुताई करते है तथा फर्श  मिटटी का होता है तथा फर्श को गोबर से पोताई करते है। अगरिया जनजाति में शिक्षा का स्तर बहुत कम होता है तथा यदि सरकारी नौकरी की बात करे तो बिलकुल विरले ही मिलते है। भारत सरकार एवं राज्य  सरकार को अगरिया जनजाति के रहन सहन में सुधार हेतु शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण प्रदान करना आवश्यक है। 

5 -अगरिया जनजाति का खान पान -इनका मुख्य भोजन चावल ,कोदो ,कुटकी ,कुटकी का भात ,पेज ,मक्का की रोटी उड़द मूंग की दाल कुल्थी की दाल वा मौसमी सब्जी है। मांशाहार में मछली ,मुर्गा ,बकरा ,इत्यादि खाते है।  

6-अगरिया जनजाति का वस्त्र विन्यास -वस्त्र विन्यास में पुरुष पंछा (छोटी धोती ) तथा अंगरखा (बंडी ) पहनते है। स्त्रियाँ लुगड़ा पहनती है। 

7 -अगरिया जनजाति में गोदना -महिलाये हाथ ,पैर , चेहरे ,कपाल ,मस्तक ,व ठुड्डी पर गुदना गुदवाती है। 

8 -अगरिया जनजाति का तीज त्यौहार -अगरिया जनजाति का प्रमुख त्यौहार नवाखाई ,कर्मापूजा ,हरियाली तीज ,तथा कजलिया है लेकिन दीपावली ,होली ,दशहरा को भी पूरा महत्त्व देते है। 

9 -अगरिया  का नृत्य-इस जनजाति के लोग कर्मा पूजा के अवसर पर कर्मा नृत्य ,दिवाली में पड़की नृत्य ,विवाह के अवसर पर विवाह नृत्य करते है। कर्मा गीत ,वदरिया गीत ,सुआ गीत ,फाग आदि संगीत एवं वाद्य यंत्रो के साथ नाचते गाते है। जिसमे स्त्री पुरुष दोनों भाग लेते है। नृत्य एवं त्यौहार के  अवसर पर रंग बिरंगे परिधान एवं आभूषणो से श्रृंगार करते है। 

10 -कला - लौह शिल्प (लोहे की सामग्री बनाना ) 

11 -अगरिया जनजाति का व्यवसाय -  अगरिया जनजाति का मुख्य व्यवसाय लौह अयस्क से लोहा बनाना तथा इसी लोहे से हंसिया ,फावड़ा ,कुदाली ,हल का फाल ,तीर की नोक आदि बनाते है। अगरिया जनजाति एक ऐसी जनजाति है जिन्होंने सबसे  पहले लौह अयस्क की पहचान किया तथा लोहा बना कर पूरी दुनिया को अवगत कराया। 

12 -अगरिया जनजति  जन्म संस्कार -अगरिया जनजाति में प्रसव स्थानीय बुजुर्ग महिलाये घर पर ही कराती थी लेकिन  वर्तमान में ऐसा देखने को नहीं मिलता जब से भारत सरकार द्वारा कई जागरूकता मुहीम चलाया गया है।  या बहुत कम देखने को मिलता है। प्रसव उपरान्त बच्चे की नाल हंसिया या चाकू से काटते है। तथा नाल वही पर गाड़ते है। प्रसूता को महुआ ,जामुन ,तथा तेन्दु की छाल ,अतिगन ,पोपोड ,गुड़ आदि का काढ़ा बनाकर पिलाते है जिससे प्रसूता को ठंडी न आये। तीसरे दिन से भात एवं अरहर की प्रसूता को खाने को देते है। तथा  ठीक छठे दिन छठी का कार्यक्रम घर सुद्धीकरण के लिए किया जाता है  उस दिन प्रसूता वा शिशु को नहलाकर नए कपडे पहनाते है। एवं देवी देवताओ प्रणाम  कराते है। 

13 -अगरिया जनजाति में विवाह संस्कार -अगरिया जनजाति में विवाह की उम्र लड़को की 16 से 18 वर्ष तथा लड़कियों की 15 से 17 वर्ष मानी  जाती है।  लेकिन  वर्तमान में भारतसरकार तथा राज्य सरकार की ओर से बाल विवाह मुहीम चलाये जाने पर काफी सुधार आया है विरले ही अब ऐसा देखने को मिलता है विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है वर के पिता वधु के पिता को चावल ,दाल ,हल्दी ,तेल ,गुड़ ,कपडा ,वा रूपए नगद कुछ (वधु धन ) के रूप में देते है जिससे  विवाह होना तय माना जाता है।  जिसे समाज में नारियल सुपाड़ी फोड़ना कहा  है। अगरिया जनजाति में मामा या बुआ की लड़की ,लड़का से विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त है। इसके आलावा समाज में विधवा तथा परित्यगता का पुनर्विवाह को भी मान्यता है।  यदि समाज  महिला विधवा हो गयी है या पति द्वारा छोड़ा गया है उसे पुनर्विवाह की मान्यता समाज द्वारा है। यही पुरुषो के लिए भी  है। तथा समाज में यदि कोई महिला या पुरुष किसी अन्य समाज में पलायन कर जाता है शादी कर लेता है तो उसे  में सामाजिक दंड  के  साथ समाज में  मिलाने का प्रावधान भी है। सामाजिक दंड खाने पीने तथा आर्थिक हो सकता है जो समाज द्वारा तय किया जाता है। 

14 -अगरिया जनजाति में मृत्यु संस्कार -अगरिया जनजाति में मृत्यु होने पर जलाया जाता है लेकिन अन्य राज्य जैसे छत्तीशगढ़ के जिला कोरबा के कुछ इलाको में दफनाते भी है। जलाने या दफनाने के ठीक तीसरे दिन तिजवा मनाया जाता है जहा परिवार के सदस्य पुरुष सिर ,दाढ़ी ,बाल ,मूछ कटवाते है।  परिवार में मृत्यु होने पर घर एवं परिवार असुद्ध माना  जाता है इसलिए घर के कपड़ो को  धोया जाता है। तथा 10 वे दिन नहावन का कार्यक्रम किया जाता है। जिसमे समाज के हर जगह से लोग आते है और परिवार के शुद्धिकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया समाज के लोगो द्वारा किया जाता है। ऐसा माना जाता है की यदि नहावन  ना किया जाय (चूकि सामाजिक भोज नहावन में दिया जाता है परिवार द्वारा)  तो परिवार सुद्ध नहीं होता है। 

15 -अगरिया जनजाति के देवी देवता -अगरिया जनजाति के प्रमुख देवता लोहासुर है जिसे   अज्ञासुर  भी कहा जाता है। साथ साथ बूढा देव् ,ठाकुर देव् ,बाघ देव् ,जोगनी ,घुरला पाठ आदि देवताओ को भी मानते है। एवं अगरिया जनजाति का सीधा सम्बन्ध पृकृति से है इसलिए सूरज ,चन्द्रमा ,वृक्ष ,पहाड़ ,नदी को भी देवता के रूप में मानते हुए पूजा पाठ करते है। 

अगरिया समाज संगठन भारत को यू ट्यूब पर देखने के लिए यू ट्यूब पर अगरिय समाज संगठन भारत सर्च करे और चैनल को सब्सक्राइब कर के जुड़े। 

अगरिया समाज संगठन भारत के सम्पूर्ण गतिविधिओ को गूगल पर पढ़ने के लिए संगठन की वेबसाइट www.agariyajanjati.in गूगल पर सर्च करे और पढ़े। 

अगरिया समाज संगठन भारत की जानकारी के लिए संगठंन की ऑफिशल वेबसाइटwww.agariyasamajsangathanbharat.xyz गूगल पर सर्च करे। 







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद एवं गोरकु गोत्र की कहानी

सोनवानी गोत्र ,केरकेता ,बघेल ,अइंद  एवं गोरकु   गोत्र की कहानी एवं इससे जुड़े कुछ किवदंती को आइये जानने का प्रयास करते है। जो अगरिया जनजाति  के  गोत्र  है।  किवदंतियो को पूर्व में कई इतिहास कारो द्वारा लेख किया गया है जिसको आज मै  पुनः आप सभी के समक्ष रखने का  हु। तो आइये जानते है -  लोगुंडी राजा के पास बहुत सारे पालतू जानवर थे। उनके पास एक जोड़ी केरकेटा पक्षी ,एक जोड़ी जंगली कुत्ते तथा एक जोड़ी बाघ थे। एक दिन जंगली कुत्तो से एक लड़का और लड़की पैदा हुए। शेरो ने भी एक लड़का और लड़की को  जन्म दिया। केरकेटा पक्षी के जोड़ो ने दो अंडे सेये और  उनमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। एक दिन लोगुंडि राजा मछली का शिकार करने गया तथा उन्हें एक ईल मछली मिली और वे उसे घर ले आये। उस मछली को पकाने से पहले उन्होंने उसे काटा तो उसमे से भी एक लड़का और लड़की निकले। उसके कुछ दिनों बाद सारे पालतू जानवर मर गए सिर्फ उनके बच्चे बचे। उन बच्चो को केरकेता ,बघेल, सोनवानी तथा अइंद गोत्र  जो क्रमश पक्षी ,बाघ ,जंगली कुत्ते ,तथा ईल मछली से पैदा  हुए थे। उन्होंने आपस  कर ली लोगुन्दी राजा के अपने एक बेटा बेटी थे। ें लोगो ने हल्दी बोई

agariya kaoun haiअगरिया कौन है

  अगरिया मध्य भारत के वे आदिवासी समुदाय है जो लोहा गलाने यानि की लौह प्रगलक का कार्य करते है उनका मुख्य व्यवसाय लोहे से जुड़ा होता है अगरिया अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते है। अगरिया समुदाय पत्थर से लोहा गलाते है लेकिन वर्तमान  में पत्थर पर सरकार द्वारा रोक लगाया गया  है जिससे उनका व्यवसाय काफी प्रभावित है। अतः अगर वर्तमान की बात करे तो अगरिया समुदाय इस समय अपने क्षेत्र में जिस ग्राम या परिवेश में रह रहे है वही के लोगो का उपयोग की सामग्री बनाकर उनको देते है तथा अपने किसानो का (जिनके ऊपर वे आश्रित है ) समबन्धी समस्तलोहे का कार्य करते है एवं अपने मेहनत का पैसा या खाद्यान्न लेकर अपने एवं अपने बच्चो का पालन पोषण कर रहे है। अगरिया समुदाय की पहचान अभी भी कई जगह में एक समस्या है है कई जगह उनको गोंड भी कह दिया जाता है ,लेकिन ऐसा कहना किस हद तक सही है पर  ,हां अगरिया को गोंडो का लोहार जरूर कहा जाता है लेकिन वास्तव में में अगरिया गोंड नहीं है बल्कि  गोंडो की उपजाति है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलाने वाले और लोहारी करने वाले लोग है जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते है लेकिन अगरिया क्

अगरिया गोत्र agariya gotra

  अगरिया समाज गोत्र  अगरिया समाज  आदिम मानव काल की प्रजाति है जो प्राचीन काल से  लौह  का प्रगलन करते आया है आज भी अगरिया आदिवासी समुदाय लोहे का व्यवसाय अपनाया हुआ है जो अगरिया आदिवासी की मुख्य व्यवसाय है लोहे की सम्मग्री बनाना लोहे के साथ आग पर काम करना आज भी सतत रूप से जारी है।   अगरिया समाज में कई गोत्र है जो कई प्रकार के है नीचे पढ़िए अगरिया समाज का सम्पूर्ण गोत्रावली  सोनवानी , सनवान ,सोनहा , 2 -अहिंदा , अहिंदवार , अहिंधा 3-चिरई , छोटे चिरई  4 -रन चिरई  5 -मराई ,मरावी ,मरई (7 देवता ) 6 -गैंट ,कांदा ,बेसरा  7 -पोर्ते ,पोरे  8 -टेकाम                ९ -मरकाम    10 - धुर्वे , कछुआ ,धुरवा     11-गुइडार ,गोहरियार ,गोयरार    12 -गिधली , गिधरी   13 - नाग   14 -परसा   15 -गढ़कू ,गोरकु   16 - बरंगिया , बरगवार                                    17 -कोइलियासी   18 -बाघ ,बघेल   19 -खुसरो ,खुसर   20 -मसराम  21 -पन्द्रो   22 -परतेती 23 -पोट्टा   24 -श्याम (7 देवता )  25 -तिलाम   26 -कोरचो   27-नेताम (4 देवता )  28 -भैरत ,भरेवा ,भवानर        29 -दूधकावर  30-कुमुन्जनि ,मुंजनी ,मुंजना (वृक्ष )  31 -मह