असुर -
*असुर जनजाति झारखण्ड की प्राचीनतम एवं आदिम जनजाति है जिनका सम्बन्ध प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड समूह से है।
*इस जनजाति को पूर्वा देवा भी कहा जाता है।
*इस जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतिस्थापक माना जाता है।
*झारखण्ड में इस जनजाति का प्रवेश मध्यप्रदेश से हुआ था।
*इनकी भाषा असुरी है जो आस्ट्रो -एशियाटिक भाषा समूह से सम्बंधित है।
*इनकी भाषा को मालेय भाषा भी कहा जाता है।
*इस जनजाति का उल्लेख ऋग्वेद , अरण्यक , उपनिषद , महाभारत आदि ग्रंथो में मिलता है। ऋग्वेद में इनका वर्णन निम्न नामो से किया गया है।
- अनासह ----------------- चिपटी नाक वाले
- अव्रत --------------------- भिन्न आचरण करने वाले
- मृधर्य वाचः ----------------अस्पष्ट बोलने वाले
- सुदृढ़ ---------------------- लौह दुर्ग अथवा अटूट दुर्ग निवासी
झारखण्ड में इनका संकेन्द्रण मुख्यतः लातेहार (नेतरहाट के पाठ क्षेत्र में सर्वाधिक) गुमला तथा लोहरदगा जिले में है।
समाज एवं संस्कृति -
*यह जनजाति वीर ,
विरजिया , तथा अगरिया
नामक तीन उपजातियो
विभाजित है।
*असुर गोत्र को पारस
कहते है इनके युवा गृह को
गीतिओड़ा कहा जाता हैं ll
*इस जनजाति मे
बाहिरगोत्रीय विवाह
प्रचलन पाया जाता हैं ll
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